Thursday, November 01, 2018

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मानस नेशनल पार्क

भारत-भूटान देशों से होकर बहने वाली मानस नदी हेतु एक एकीकृत नदी बेसिन प्रबंधन योजना पर काम करने के लिये भारत और भूटान सहमत हो गए हैं।

यह नदी भूटान से असम तक बहती है जो आगे चलकर ब्रह्मपुत्र नदी में मिल जाती है।

मानस नेशनल पार्क (MNP) यूनेस्को द्वारा घोषित विश्व धरोहर स्थल है।

यह भारत-भूटान सीमा पर 850 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।

यह पहल तेज़ी से बदलते पूर्वी हिमालय, विशेष रूप से असम में आजीविका, खाद्य सुरक्षा, जीवन, संपत्ति और अवसंरचना के संदर्भ में सीमा पर बाढ़ के खतरे को संबोधित करने का संयुक्त प्रयास करती है।

इस परियोजना का उद्देश्य भारत और भूटान के बीच द्वि-राष्ट्रीय बेसिन सहयोग में विश्वास और सहयोग बनाना है।

यह परियोजना वाटरशेड उपचार, तलछट प्रबंधन, समुदाय आधारित अनुकूलन और अन्य समाधानों के बीच बाढ़ की प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली सहित पारिस्थितिकी तंत्र आधारित दृष्टिकोणों का संचालन करेगी।

एडिनोवायरस

हाल ही में अमेरिका के न्यू जर्सी में एक वायरस के घातक प्रकोप ने कई लोगों की जान ले ली।

गौरतलब है कि यह वायरस कम उम्र के बच्चों को ही अपनी चपेट में ले रहा है। 

इस प्रकोप का कारण एडिनोवायरस को माना जा रहा है।

एडिनोवायरस ऐसा वायरस होता है जो श्वास नली, आँत, आँख या मूत्र पथ की परत पर पनपता है।

यह वायरस जुकाम, निमोनिया, पाचन से संबंधित बीमारियों तथा मूत्र संक्रमण का कारण बन सकता है।

इस वायरस के दर्जनों उपभेद होते हैं लेकिन इस प्रकोप के पीछे एडिनोवायरस 7 का होना बताया जा रहा है।

विशेष रूप से एडिनोवायरस 7 खतरनाक होता है और निमोनिया सहित श्वसन संबंधी प्रमुख जटिलताओं का कारण बन सकता है।

हालाँकि आमतौर पर यह धारणा है कि एडिनोवायरस से मौत नहीं होती है।

यह वायरस भी उन लोगों के ऊपर ही हावी होता है जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमज़ोर होती है, जैसा कि न्यू जर्सी के बच्चों के मामले में हुआ है।

(FSDC) की 19वीं बैठक

हाल ही में नई दिल्‍ली में केंद्रीय वित्त और कार्पोरेट मामलों के मंत्री श्री अरुण जेटली की अध्‍यक्षता में वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (Financial Stability and Development Council-FSDC) की 19वीं बैठक संपन्न हुई।

              प्रमुख बिंदु

इस बैठक में केंद्रीय वित्त मंत्री ने वर्तमान वैश्विक और घरेलू आर्थिक स्थिति तथा वित्तीय क्षेत्र के कामकाज की समीक्षा की।
परिषद की इस बैठक के दौरान वास्‍तविक ब्‍याज दर, गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों तथा म्‍युचुअल फंड में क्षेत्रवार तरलता स्थिति जैसे अनेक विषयों पर चर्चा हुई। इस संबंध में परिषद ने निर्णय लिया कि नियामक संस्‍था और सरकार स्थिति पर निगरानी रखेगी और सभी आवश्‍यक कदम उठाएगी
FSDC की इस बैठक में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर डॉ. उर्जित आर. पटेल, वित्त और राजस्‍व सचिव डॉ. हंसमुख अढिया, सेबी के अध्‍यक्ष श्री अजय त्‍यागी एवं बीमा नियामक तथा विकास प्राधिकरण के अध्‍यक्ष श्री सुभाष चंद्र खुंटिया सहित अन्य वरिष्‍ठ अधिकारी उपस्थित थे।
FSDC की बैठक में वैधानिक ढाँचे के अंतर्गत वित्तीय क्षेत्र में कंप्‍यूटर इमरजेंसी रिस्‍पॉस टीम के गठन में प्रगति सहित वित्तीय क्षेत्र में साइबर सुरक्षा को मज़बूती प्रदान करने पर भी चर्चा की गई।

उल्लेखनीय है कि परिषद ने वित्तीय क्षेत्र में महत्त्वपूर्ण सूचना ढाँचे की पहचान करने और उसे प्राप्‍त करने की आवश्‍यकता पर भी चर्चा की। परिषद ने गुप्‍त (क्रिप्‍टो) परिसंपत्ति/ मुद्रा की चुनौतियों पर भी चर्चा की।
परिषद को इस विषय पर सचिव (आर्थिक कार्य) की अध्‍यक्षता में उच्‍च समिति द्वारा की गई चर्चा की जानकारी दी गई ताकि निजी क्रिप्‍टो मुद्रा पर पाबंदी के लिये उचित कानूनी ढाँचा तैयार किया जा सके और 2018-19  के बजट में घोषित वितरित खाता टेक्‍नोलॉजी के उपयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद

वित्तीय स्थिरता और विकास परिषद (Financial Stability and Development Council - FSDC) का गठन दिसंबर 2010 में किया गया था। परिषद की अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री द्वारा की जाती है।

इसके सदस्यों में भारतीय रिज़र्व बैंक के गवर्नर, वित्त सचिव, आर्थिक मामलों के विभाग के सचिव, वित्तीय सेवा विभाग के सचिव, मुख्य आर्थिक सलाहकार, वित्त मंत्रालय, सेबी के अध्यक्ष, इरडा के अध्यक्ष, पी.एफ.आर.डी.ए. के अध्यक्ष को शामिल किया जाता है।

          यह क्या कार्य करता है?

परिषद का कार्य वित्तीय स्थिरता, वित्तीय क्षेत्र के विकास, अंतर-नियामक समन्वय, वित्तीय साक्षरता, वित्तीय समावेशन तथा बड़ी वित्तीय कंपनियों के कामकाज सहित अर्थव्यवस्था से जुड़े छोटे-छोटे मुद्दों का विवेकपूर्ण पर्यवेक्षण करना है।
इसके अतिरिक्त इस परिषद को अपनी गतिविधियों के लिये अलग से कोई कोष आवंटित नहीं किया जाता है।

मानवीय गतिविधियाँ, वन्यजीवन के लिये खतरा

हाल ही में WWF ने अपनी लिविंग प्लैनेट रिपोर्ट 2018 जारी की है। इस रिपोर्ट में वन्यजीवन पर मानवीय गतिविधियों के भयानक प्रभाव की चर्चा की गई है। रिपोर्ट में यह खुलासा किया गया है कि 1970 के बाद मानवीय गतिविधियों की वज़ह से वन्यजीवों की आबादी में 60 प्रतिशत तथा वेटलैंड्स में 87 प्रतिशत की कमी आई है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु

यह रिपोर्ट वन्यजीवन, जंगलों, महासागरों, नदियों और जलवायु पर मानवीय गतिविधियों के प्रभाव की भयावह तस्वीर चित्रित करती है।

रिपोर्ट के इस संस्करण में मृदा जैव विविधता का खंड नया है। वैश्विक मृदा जैव विविधता पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। वेटलैंड्स का गायब होना भारत के लिये गंभीर चिंता का विषय है।

इस रिपोर्ट में प्राकृतिक आवास का ह्रास या कमी, संसाधनों का अत्यधिक दोहन, जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण एवं आक्रामक प्रजातियों से होने वाले खतरों को भी सूचीबद्ध किया गया है।

विशेष रूप से यह कृषि और वनों की कटाई के द्वारा प्रकृति के अत्यधिक दोहन को इंगित करता है।

WWF-इंडिया के अनुसार, दुनिया भर में 4,000 से अधिक प्रजातियों की निगरानी की गई जिसमें 1970 से 2014 के बीच 60 प्रतिशत की गिरावट देखी गई है।

इस रिपोर्ट में, विशेष रूप से कशेरुकी प्रजातियों की निगरानी के आँकड़े थे। जिसे स्तनधारियों, पक्षियों, मछली, सरीसृपों और उभयचरों की लगभग 22,000 से अधिक जनसंख्या की जानकारी वाले डेटाबेस से लिया गया था।

WWF-इंडिया ने मृदा पारिस्थितिकी, भूमि क्षरण, आर्द्रभूमि और परागण करने वाले जीवों जैसे- मधुमक्खी पर मंडराते गंभीर खतरे की ओर भी इशारा किया है। गौरतलब है कि मधुमक्खी जैसे जीवों का मानव स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा पर प्रत्यक्ष प्रभाव होता है।

‘अग्रणी वैश्विक खाद्य फसलों’ में 75 प्रतिशत से अधिक फसलें परागण करने वाले जीवों पर निर्भर रहती हैं।

आर्थिक नजरिये से, परागण फसल उत्पादन के वैश्विक मूल्य में 237-577 बिलियन डॉलर प्रति वर्ष की बढ़ोतरी करता है।

                  निष्कर्ष

निश्चित रूप से वन्यजीव संरक्षण बेहद महत्त्वपूर्ण ही नहीं बल्कि एक पर्यावरणीय अनिवार्यता भी है, लेकिन यह भी सच है कि कम होते जा रहे जंगल अब वन्यजीवों को पूर्ण आवास प्रदान करने के लिये पर्याप्त नहीं हैं। अतः ऐसी नीतियाँ बनाने की ज़रूरत है, जिससे मनुष्य व वन्यजीव दोनों की ही सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।

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